झारखंड के 1932 का खतियान केंद्र नहीं माना तो सालों लटक जाएगा विधेयक अब भी है कठिन डगर।

रांची-झारखंड मे जिसके पास होगा 1932 या इसके पहले का खतियान वही माना जाएगा झारखंडी। झारखंड सरकार ने स्थानीयता पर 11 नवम्बर 2022 दिन शुक्रवार को विधानसभा से जो विधेयक पारित किया है उसपर पूरे राज्य में जश्न का माहौल है। इसे एक बड़ा सियासी स्टंट माना जा रहा है लेकिन 1932 के खतियान वाला यह फैसला सरजमीन पर उतारने की राह में अब भी कई तकनीकी पेंच हैं।
पहले समझें प्रॉसेस,कैसे आया 1932 और कैसे होगा लागू।
1932 के पनघट की डगर कैसे कठिन है इसे समझने के लिए पीछे के चैप्टर और आगे के पड़ावों को सिलसिलेवार देखना होगा 14 सितम्बर को हेमंत सरकार ने कैबिनेट से 1932 के खतियान पर आधारित पॉलिसी को मंजूरी दे दी। इसके बाद 11 नवम्बर 2022 को विधानसभा के विशेष सत्र में यह विधेयक पास करा लिया गया नाम दिया गया ‘परिणामी सामाजिक,सांस्कृतिक और अन्य लाभों को ऐसे स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिए। अधिनियम 2022 अब इस विधेयक को राज्यपाल के पास भेजा जाएगा। राज्यपाल से मंजूरी मिलने के बाद यूं तो सामान्य विधेयक कानून का रूप ले लेते हैं। लेकिन इस विधेयक को राज्यपाल के आगे भी कई पड़ावों से गुजरना है। इस विधेयक को संविधान की नौंवी अनुसूची में डालना है इसलिए इसे केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा केंद्र सरकार बिल के रूप में लोकसभा में पेश करेगी लोकसभा में इस पर चर्चा होगी। लोकसभा में बिल पारित होगा फिर राज्यसभा में बिल को भेजा जाएगा राज्यसभा में बिल पर चर्चा होगी राज्यसभा में बिल पास होगा इसके बाद इसे राष्ट्रपति का अनुमोदन प्राप्त करने के लिए भेजा जाएगा। राष्ट्रपति का अनुमोदन प्राप्त होने के बाद ही इसे नौवीं अनुसूची में डाला जाएगा तब कहीं जाकर यह कानून प्रभावी होगा जाहिर है ऐसा तब होगा जब केंद्र और राज्य सरकार के बीच के समन्वय बिल्कुल आइडियल होंगे। फिल हाल राज्य और केंद्र सरकार के बीच जो रिश्ते हैं वो जगजाहिर है केंद्र और राज्य की लाइन एक भी हो जाए तब भी इसे जमीन पर उतारने में लंबे प्रॉसेस से गुजरना पड़ेगा।
संविधान के नौंवी अनुसूची में क्यों डाला जाना है यह विधेयक।
1932 के मामले को पहले कोर्ट से भी झटका लग चुका है बाबूलाल मरांडी के मुख्यमंत्रित्व काल में भी 1932 पर आधारित पॉलिसी आई थी उसे झारखंड हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। इसलिए राज्य सरकार चाहती है कि इस बार अगर यह कानून बने तो कोर्ट में इसे चैलेंज नहीं किया जा सके।1932 को लेकर खुद सीएम हेमंत सोरने सदन में कह चुके हैं कि कानून तो बन जाएगा लेकिन कोर्ट में यह नहीं ठहरेगा। इसलिए अब इसे नौवीं अनुसूची में डाले जाने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा जाएगा नौंवी अनुसूची में जिस विधेयक को डाला जाता है उसे कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता। इसी वजह से हेमंत सरकार ने नौवीं अनुसूची की चाल चली है इसके जरिए केंद्र सरकार को लपेटे में लिया जा रहा है।
जानें क्या कहते हैं एक्सपर्ट।
इस मामले पर संविधान के विशेषज्ञ पीडीटी आचार्य ने बताया कि इस मामले से जुड़ी सारी कार्यवाही अब केंद्र सरकार को करनी है नौंवी अनुसूची में जो भी विधेयक डाले जाएंगे उसके लिए संविधान में संशोधन किया जाएगा। किसी भी तरह के संविधान में संशोधन के लिए बिल लाना होगा बिल दोनों सदनों से पास कराना होगा उसके लिए पूरी बहुमत की आवश्यकता होगी दोनों सदनों से पास हो जाने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी चाहिए होगी। इतना करने में सबसे जरूरी ये होगा कि राज्य सरकार के इस विधेयक के साथ केंद्र सरकार क्या करना चाहती है केंद्र सरकार चाहेगी तभी ऐसा हो पाएगा। नहीं तो इस पूरे प्रकरण में कितने साल लगेंगे यह नहीं कहा जा सकता केंद्र सरकार की अनुमति के बगैर इसे प्रक्रिया में ही नहीं डाला जाएगा। सिर्फ राज्य सरकार के विधेयक पास करने से नहीं होता है राज्य सरकार को केंद्र सरकार को यह बताना होगा कि यह कानून राज्य के लिए कितना जरूरी है। केंद्र अगर कन्विंस नहीं होता है तो व्यावहारिक तौर पर विधानसभा से पारित इस विधेयक का कोई फायदा नहीं है।