अखिल भारतीय भुइयां समाज जमुनियाडीह में “माता शबरी” की जयंती बडे़ ही हर्षोल्लास के साथ मनाया।

पलामू-तरहसी अखिल भारतीय भुइयां समाज ग्राम जमुनियाडीह में माता शबरी की जयंती बडे़ ही हर्षोल्लास के साथ मनाया। इस जयंती मना रहे कमेटी के अध्यक्ष गुड्डू कुमार भुईयां ने बताया कि ग्रंथों में मिलने वाली कथा के अनुसार माता शबरी भगवान श्री राम की परम भक्त थी। शबरी का असली नाम “श्रमणा” था जो भील सामुदाय के शबर जाति से संबंध रखती थीं इसी कारण कालांतर में उनका नाम शबरी हुआ इनके पिता भीलों के मुखिया थे। उन्होंने “श्रमणा” का विवाह एक भील कुमार से तय किया था विवाह से पहले परंपरा के अनुसार कई सौ पशुओं को बलि देने के लिए लाया गया। जिन्हें देख “श्रमणा” का हृदय द्रवित हो उठा कि यह कैसी परंपरा जिसके कारण बेजुबान और निर्दोष जानवरो की हत्या की जाती है।
इसी कारणवश शबरी अपने विवाह से एक दिन पूर्व भाग गई और दंडकारण्य वन में पहुंच गई दंडकारण्य में मातंग ऋषि तपस्या किया करते थे। “श्रमणा” उनकी सेवा करना चाहती थी परंतु वह भील जाति से थी जिसके कारण उन्हें लगता था कि उन्हें सेवा करने का अवसर नहीं मिलेगा।
लेकिन इसके बाद भी वे चुपचाप प्रातः जल्दी उठकर आश्रम से नदी तक का रास्ते से सारे कंकड़ और कांटो को चुनकर पूरे रास्ते को भलिभांति साफ कर दिया करती थी और रास्ते में बालू बिछा देती थी।
परंतु अपने प्रभु राम के आने की खबर सुनते ही उसमे चुस्ती आ गई और वो दौड़ती हुई,अपने प्रभु राम के पास पहुंची और उन्हें घर लेकर आई और उनके पांव को धोकर बैठाया। इसके बाद उन्होंने अपने तोड़े हुए मीठे बेर राम को दिए भगवान राम ने बड़े प्रेम से वे बेर खाए और अपनी भक्त शबरी की भक्ति को पूर्ण किया इसी कारण से आज सभी लोग माता शबरी की पूजा करते आ रहें हैं और उनकी जयंती मनाते हैं।
वहीं मुखिया पति लालमुनि राम ने भी इस शबरी जयंती कार्यक्रम में सामिल हो कर माता शबरी की जयंती मना रहे लोगो को हर संभव साथ देने को कहा वही उन्होने लोगो से अपील किया की आप सभी अपने बच्चो को उच्च शिक्षा प्राप्त कराए नशा से दुर भगाए एवं माता शबरी के बताए रास्ते पर चले तब जा कर ये जयंती सार्थक होगा।
मौके पर सचिव रमेश भुईयां, कोषाध्यक्ष सुरेंद्र भुईयां, कईल भुईयां, बबलू भुईयां, प्रभु भुईयां एवं समस्त भुईयां परिवारों ने मिल कर माता शबरी की पूजा अर्चना किया तथा जयंती मनाएं।