पलामू में शोभायात्रा के साथ संत शिरोमणि गुरु रविदास जी का 647वीं जयंती धूम-धाम से मनाया गया,किया गया भंडारे का आयोजन।

पलामू न्यूज Live//पलामू जिले के नीलांबर पीताम्बरपुर प्रखंड अंतर्गत हरतुआ पंचायत के सोनेसरई गांव में “संत शिरोमणि रविदास दिव्य ज्योति संघ” के द्वारा संत शिरोमणि श्री गुरु रविदास जी कि 647वीं जयंती बड़े ही धूम-धाम के साथ हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी मनाई गई। इस कार्यक्रम का मुख्य अतिथि पांकी विधानसभा के पूर्व विधायक देवेंद्र कुमार सिंह उर्फ बिट्टू सिंह के कार्यकर्ता सह समाजसेवी अनुप कुमार जायसवाल ने संत शिरोमणि गुरु रविदास जी कि प्रतिमा पर माल्यार्पण कर पुष्प अर्पित किया और कैंडल जलाकर कार्यक्रम का शुरुआत किया। वहीं कार्यक्रम के संबोधन में श्री जायसवाल ने कहा कि संत शिरोमणि गुरु रविदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के कासी गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। उनकी माता का नाम कर्मा देवी (कलसा) तथा पिता का नाम संतोख दास (रग्घु) है। दादा का नाम श्री कालूराम जी, दादी का नाम श्रीमती लखपती जी, पत्नी का नाम श्रीमती लोनाजी और पुत्र का नाम श्रीविजय दास जी है। संत रविदास जी चर्मकार कुल से होने के कारण वे जूते बनाते थे। ऐसा करने में उन्हें बहुत खुशी मिलती थी और वे पूरी लगन तथा परिश्रम से अपना कार्य करते थे। वाराणसी में संत रविदास का भव्य मंदिर और मठ है जहां सभी जाति के लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। वाराणसी में श्री गुरु रविदास पार्क है जो नगवा में उनके यादगार के रुप में बनाया गया है उनके नाम पर ‘गुरु रविदास स्मारक और पार्क’ बना है। संत रविदास जी का जन्म माघ पूर्णिमा को 1376 ईस्वी में हुआ था, भारतीय परंपरा में संतों और बुद्धों के जन्म और मरण को प्रायः पूर्णिमा से जोड़ा जाता है। कबीर नानक और गौतम बुद्ध का जन्मदिन हम खास महीनों की पूर्णिमा को ही मनाते हैं। संत रविदास ने अपने दोहों व पदों के माध्यम से समाज में जातिगत भेदभाव को दूर कर सामाजिक एकता पर बल दिया और मानवतावादी मूल्यों की नींव संत रविदास ने रखी। इतना ही नहीं वे एक ऐसे समाज की कल्पना भी किए हैं जहां किसी भी प्रकार का लोभ, लालच, दुख, दरिद्रता, भेदभाव नहीं हो संत रविदास जी ने सीधे-सीधे लिखा है कि।
‘रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच, नर कूं नीच कर डारि है ओछे करम की नीच’
यानी कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने कर्म से नीच होता है जो व्यक्ति गलत काम करता है वो नीच होता है कोई भी व्यक्ति जन्म के हिसाब से कभी नीच नहीं होता। संत रविदास ने अपनी कविताओं के लिए जनसाधारण की ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। साथ ही इसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और रेख्ता यानी उर्दू-फारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। रविदासजी के लगभग चालीस पद सिख धर्म के पवित्र धर्मग्रंथ ‘गुरुग्रंथ साहब’ में भी सम्मिलित किए गए है। राजस्थान की कृष्णभक्त कवयित्री मीरा का रविदास से मुलाकात का कोई आधिकारिक विवरण तो नहीं मिलता है, लेकिन कहते हैं मीरा के गुरु रविदासजी ही थे। कहते हैं संत रविदास ने कई बार मीराबाई की जान बचाई थी। संत रविदासजी बहुत ही दयालु और दानवीर थे जब भी किसी को सहायता की आवश्यकात होती थी तो दिल खोलकर दान किया करते थे। संत रविदास जी को दूसरों की सहायता करने में अच्छा लगता था रविदास जी को पंजाब में रविदास उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में उन्हें रैदास जी कहते हैं। गुजरात और महाराष्ट्र के लोग ‘रोहिदास’ और बंगाल के लोग उन्हें ‘रुइदास’ कहते हैं। कई पुरानी पांडुलिपियों में उन्हें रायादास, रेदास, रेमदास और रौदास के नाम से भी जाना गया है कहते हैं कि माघ मास की पूर्णिमा को जब गुरु रविदास जी ने जन्म लिया वह रविवार का दिन था जिसके कारण इनका नाम रविदास रखा गया। उनका जन्म ऐसे समय में हुआ था जब उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में मुगलों का शासन था चारों ओर अत्याचार, गरीबी, भ्रष्टाचार व अशिक्षा का बोलबाला था। संत रविदास की ख्याति लगातार बढ़ रही थी जिसके चलते उनके लाखों भक्त थे जिनमें हर जाति के लोग शामिल थे। यह सब देखकर एक परिद्ध मुस्लिम ‘सदना पीर’ उनको मुसलमान बनाने आया था। उसका सोचना था कि यदि संत रविदास जी मुसलमान बन जाते हैं तो उनके लाखों भक्त भी मुस्लिम हो जाएंगे। ऐसा सोचकर उनपर हर प्रकार से दबाव बनाया गया था लेकिन संत रविदास तो संत थे उन्हें किसी हिन्दू या मुस्लिम से नहीं मानवता से मतलब था। चित्तौड़ के राणा सांगा की पत्नी झाली रानी उनकी शिष्या बनीं थीं आज भी चित्तौड़ में संत रविदास जी की छतरी बनी हुई है। मान्यता है कि वे वहीं से स्वर्गारोहण कर गए थे हालांकि इसका कोई आधिकारिक विवरण नहीं है लेकिन कहते हैं कि वाराणसी में 1540 ईस्वी में उन्होंने देह छोड़ दी थी। इस कार्यक्रम के मुख्य संचालन कर्ता विनय कुमार रवि सामान्य चिकित्सक, अध्यक्ष अनुज कुमार, कोषाध्यक्ष मुन्नीलाल कुमार रवि, सचिव नाजीर कुमार एवं कमेटी के अन्य दर्जनों सदस्यों ने मुख्य अतिथि को माला पहनाएं और नीला गमछा से पगड़ी बांध कर ससमान स्वागत किया।
“ऐसा चाहूं राज मैं जहां मिले सबन को अन्न, छोट बड़ सब सम बसें रविदास रहे प्रसन्न” विनय कुमार।
वहीं मंच संचालन कर्ता सामान्य चिकित्सक विनय कुमार रवि ने कहा कि संतो में संत शिरोमणि का उपाधि प्राप्त करने वाले में विश्व के एक ही व्यक्ति थे उनका नाम था संत रविदास संतों में शिरोमणि की उपाधि प्राप्त करने वाले मानव को एक सूत्र में जोड़ कर ऊंच नीच भेदभाव, पाखंडवाद रूढ़िवाद से मुक्त करने वाले संत शिरोमणि रविदास जी ने एक दोहा के माध्यम से पूरे दुनिया में संदेश दिए थे। “ऐसा चाहूं राज मैं जहां मिले सबन को अन्न, छोट बढ़ सब सम बसें रविदास रहे प्रसन्न” इसका तात्पर्य यह हुआ कि पूरे भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में संत शिरोमणि रविदास महाराज जी चाहते थे किसी भी जगह पर कोई छोट न कोई बढ़ है कोई उच्च न कोई नीच है मैं ऐसा राज देखना चाहता हूं, ऐसा राज बनाना चाहता हूं ऐसा राज्य का घोषणा करना चाहता हूं की इस दुनिया में सब मानव एक समान हों। मैं ऐसा राज चाहता हूं जहां की सबों को अन्न मिले सबों का पानी मिले सबों का रहने का जगह मिले सबों का धन संपत्ति रखने का अधिकार मिले मानव समान समाज कल्याण का बात करते थे। साथ ही उन्होंने कहा कि जिंदगी की खुशी ना मौत का गम जब तक है दम जय रविदास कहेंगे, जय रविदास जय फूले जय अंबेडकर संविधान जिंदाबाद जय मूलनिवासी कहेंगे।
सोनेसरई में धूम-धाम से शोभा यात्रा के बाद भंडारा तब विसर्जन किया गया।
बतादें कि 25 फरवरी 2024 दिन रविवार को शोभा यात्रा पुरे गांव के महिला पुरुष बच्चें नौजवानों ने बड़े ही हर्ष के साथ निकाला जो संत शिरोमणि गुरु रविदास जी के पुजा स्थल से शुरुआत कर देवी मंडल ब्राह्मण टोला, महुराम टोला, बिचला टोला होते हुए नदी टोला गाजे-बाजे के साथ नाचते गाते हुए गए और पुनः पुजा स्थल पर वापस आया। वहीं कमेटी के द्वारा भंडारे का आयोजन किया गया था जिसका प्रसाद सभी ने ग्रहण कर तृप्त हुए। पुनः दुसरे दिन 26 फरवरी 2024 दिन सोमवार को गाजे-बाजे के साथ संत शिरोमणि गुरु रविदास जी कि प्रतिमा विसर्जन किया गया जिसमें मुख्य अतिथि व गांव के सभी लोगों ने विसजर्न में सामिल हुए। इस कार्यक्रम के मौके पर समाजसेवी अनुप कुमार जायसवाल, अध्यक्ष अनुज कुमार, सचिव नाजीर कुमार, कोषाध्यक्ष मुन्नीलाल कुमार रवि, बी टीम के अध्यक्ष रामस्वरूप कुमार, सचिव रोशन कुमार, कोषाध्यक्ष राकेश कुमार रवि, अवधेश राम, कमेश राम, देवेंद्र कुमार सिंह, संदीप कुमार चंद्रवंशी, उपेन्द्र कुमार, अरविंद कुमार उर्फ बसंत, रामलगन कुमार, सत्यम कुमार, गोविंद कुमार, विजय कुमार, सोनू कुमार, निरज, देवधारी, डब्लू, रवि कुमार सहित सैकड़ों महिला पुरुष शामिल थे।